Monday 30 July, 2007

प्यास कैसी होती है

blogvani

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सोच रहा हूँ मै बैठा,
ये प्यास कैसी होती है,

बिना पानी के मछली जैसी,

या फ़िर सूखे पेड़ के जैसी,

ये प्यास कैसी होती है,

सूख जाते है पेड़ प्यास में,

फ़ट जाती है धरती प्यास में

या फ़िर सुखे सागर जैसी

ये प्यास कैसी होती है

किसी को प्यास है कुर्सी की,

कोई पैसे का प्यासा है,

किसी को प्यास है शौहरत की,

कोई प्राणो का प्यासा है,

ये प्यास कैसी होती है,

मुझको भी तो प्यास लगी है

बढ़ा होने की आस लगी है,

पढ़लिख कर पायलट बनने की,

दूर हवा में उड़ जाने की

दुनिया भर में नाम कमाने की

सोच रहा हूँ मै बैठा,

ये प्यास कैसी होती है॥
अक्षय चोटिया
कक्षा-छठी

Friday 20 July, 2007

सुबह की सैर

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blogvani







सुबह की सैर

सुबह सवेरे उठ कर जब मै,

पापा के संग सैर गया था,

मारे हँसी के बुरा हाल था,

पार्क में भी क्या कमाल था,


इतने सारे लोग वहाँ थे,

मोटे-पतले,लम्बे-छोटे,

उछल रहे थे बन्दर जैसे,

कोई शेर जैसे दहाड़ रहा था,

कोई हाथी सा चिंघाड़ रहा था,

किसी को तोंद का सवाल था,
देख कर मेरा तो बुरा हाल था,

जब मैने भी दौड़ लगाई,

एक मोटी आंटी पास में आई,

देख के उसको मै हँसा,

समझो आज तो मै फ़सा,

कान पकड़ मेरा वो बोली,

तुझको क्या गम है,

तेरी तो उम्र अभी कम है,


घर जाओ आराम करो,

न बचपन खराब करो,

जब तुम मोटे हो जाओगे,

मेरे जैसे ही दौड़ लगाओगे,


हिटलर ने भी चपत लगाई,

खाकर चपत मुझे अकल आई,

अब ना मोटे पर हँस पाऊँगा,

हिटलर के संग पार्क जाऊँगा।





हिटलर(पापा)

अक्षय

Sunday 17 June, 2007

मेरे डैडी


मेरे डैडी


मेरे डैडी सबसे प्यारे,

सारे जग में सबसे न्यारे।


रोज सवेरे सैर पर जाते,

मुझको भी दौड़ लगवाते,

थकहार कर घर को आते,

हिटलर जैसे हुकुम सुनाते,

कभी हँसते और हमे हँसाते,

दिल से बहुत ही प्यारे,

मेरे डैडी सबसे न्यारे।


रोत रात जब घर आते,

आते ही आवाज लगाते,

पढ़ो-पढ़ो की रट लगाते,

पर जब मै मस्ती करता,

बड़े प्यार से चपत लगाते,

मेरे सपनो के हीरो प्यारे,

मेरे डैडी सबसे न्यारे।


घर में सब उनसे डर जाते,

लेकिन मम्मी से वो डर जाते,

सबका घर में ख्याल वो रखते,

दादा-दादी को प्यार वो करते,

दादी माँ की आँखों के तारे,

मेरे डैडी सबसे न्यारे।


आज यही प्रण हम करते,

सदा रहें हम दोस्त बनके,

जैसे सदा प्यार आप करते,

सारे घर का ख्याल भी रखते,

हम भी जब बडे़ हो जाये,

डैडी जैसा नाम कमाएं।


आपका प्यारा बेटा

अक्षय






Saturday 9 June, 2007

काश कि मै...














काश कि मै बादल होता,

वर्षा करता खेतों में...


काश कि मै पेड़ होता,

छायां करता धूप में...


काश कि मै जल होता,

प्यास बुझाता गर्मी में...


काश कि मै हवा होता,

घुल-मिल जाता सांसो में...


काश कि मै फ़ूल होता,

महक जाता जीवन में...

अक्षय चोटिया



मेरा परिचय
















मेरा नाम अक्षय है,,और आप सब की तरह मै भी कवि बनना चाहता हूँ और आप सब की कविताएँ पढ़ाना चाहता हूँ।

मुझे एक कविता बेहद पसंद है,जो मेरी माँ मुझे सुनाती है...जिसने मुझे लिखने की प्रेरणा दी है...उसकी कुछ पक्तिंयाँ इस प्रकार से है...

लहरो से डर कर नौका पार नही होती,
कोशिश करने वालो की हार नही होती।

अक्षय....