
सुबह की सैर
सुबह सवेरे उठ कर जब मै,
पापा के संग सैर गया था,
मारे हँसी के बुरा हाल था,
पार्क में भी क्या कमाल था,
इतने सारे लोग वहाँ थे,
मोटे-पतले,लम्बे-छोटे,
उछल रहे थे बन्दर जैसे,
कोई शेर जैसे दहाड़ रहा था,
कोई हाथी सा चिंघाड़ रहा था,
किसी को तोंद का सवाल था,
देख कर मेरा तो बुरा हाल था,
जब मैने भी दौड़ लगाई,
एक मोटी आंटी पास में आई,
देख के उसको मै हँसा,
समझो आज तो मै फ़सा,
कान पकड़ मेरा वो बोली,
तुझको क्या गम है,
तेरी तो उम्र अभी कम है,
घर जाओ आराम करो,
न बचपन खराब करो,
जब तुम मोटे हो जाओगे,
मेरे जैसे ही दौड़ लगाओगे,
हिटलर ने भी चपत लगाई,
खाकर चपत मुझे अकल आई,
अब ना मोटे पर हँस पाऊँगा,
हिटलर के संग पार्क जाऊँगा।
हिटलर(पापा)
जब मैने भी दौड़ लगाई,
एक मोटी आंटी पास में आई,
देख के उसको मै हँसा,
समझो आज तो मै फ़सा,
कान पकड़ मेरा वो बोली,
तुझको क्या गम है,
तेरी तो उम्र अभी कम है,
घर जाओ आराम करो,
न बचपन खराब करो,
जब तुम मोटे हो जाओगे,
मेरे जैसे ही दौड़ लगाओगे,
हिटलर ने भी चपत लगाई,
खाकर चपत मुझे अकल आई,
अब ना मोटे पर हँस पाऊँगा,
हिटलर के संग पार्क जाऊँगा।
हिटलर(पापा)
अक्षय