
सुबह की सैर
सुबह सवेरे उठ कर जब मै,
पापा के संग सैर गया था,
मारे हँसी के बुरा हाल था,
पार्क में भी क्या कमाल था,
इतने सारे लोग वहाँ थे,
मोटे-पतले,लम्बे-छोटे,
उछल रहे थे बन्दर जैसे,
कोई शेर जैसे दहाड़ रहा था,
कोई हाथी सा चिंघाड़ रहा था,
किसी को तोंद का सवाल था,
देख कर मेरा तो बुरा हाल था,
जब मैने भी दौड़ लगाई,
एक मोटी आंटी पास में आई,
देख के उसको मै हँसा,
समझो आज तो मै फ़सा,
कान पकड़ मेरा वो बोली,
तुझको क्या गम है,
तेरी तो उम्र अभी कम है,
घर जाओ आराम करो,
न बचपन खराब करो,
जब तुम मोटे हो जाओगे,
मेरे जैसे ही दौड़ लगाओगे,
हिटलर ने भी चपत लगाई,
खाकर चपत मुझे अकल आई,
अब ना मोटे पर हँस पाऊँगा,
हिटलर के संग पार्क जाऊँगा।
हिटलर(पापा)
जब मैने भी दौड़ लगाई,
एक मोटी आंटी पास में आई,
देख के उसको मै हँसा,
समझो आज तो मै फ़सा,
कान पकड़ मेरा वो बोली,
तुझको क्या गम है,
तेरी तो उम्र अभी कम है,
घर जाओ आराम करो,
न बचपन खराब करो,
जब तुम मोटे हो जाओगे,
मेरे जैसे ही दौड़ लगाओगे,
हिटलर ने भी चपत लगाई,
खाकर चपत मुझे अकल आई,
अब ना मोटे पर हँस पाऊँगा,
हिटलर के संग पार्क जाऊँगा।
हिटलर(पापा)
अक्षय
9 comments:
बड़िया लिखा है अक्षय। keep it up.
हा हा सही है भीड़ू अक्षय!!
पन बावा कहीं हिटलर ने ये हिटलर लिखा पढ़ लिया तो और कितनी चपत लगेगी, सोचा क्या
अच्छी कविता । अक्षय बेटे रोज दौडो, ताकि तुम्हारी कल्पनायें भी पर लगा कर दौडे । हिटलर पापा को आपकी कवितायें नरम बना देंगी ।
मस्त!
हिटलर ने कहीं सच में अपना हिटलर रूपी सम्मान चिन्ह देख लिया तो दिक्कत हो जायेगी :)
भगवान आपकी रखा करें, शुभकामनाएँ!
सस्नेह,
- गिरिराज जोशी "कविराज"
लिखते रहो प्यारे बालकवि, अभी बहुत आगे जाना है -- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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लगते नहीं हो नन्हें कवि तुम इतने छोटे काफी बड़ी है तुम्हारी सोंच,पार कर गये तुम कई ऊँचाइयों को।
वाह बेटा, बहुत खूब. मोटों को देखकर हँसना नहीं चाहिये...हा हा!!
लिखते रहो, बढ़िया लिख रहे हो.
well done
बहुत बढिया छोटे मिंयां .. अपनी दौड जारी रखो बचपन से ही... मोटापे का इन्तजार न करो
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